इस तरह खुदगर्ज़ ना बन जाइए ।
माल बहुत है ज़रा धीरे-धीरे खाइए ॥
जल जाए दिल्ली या मुम्बई जाए दहल।
आप अपनी-अपनी रोटियाँ पकाइए ॥
दर्द होता है दिल का दुश्मन हुज़ूर ।
हमारी दुश्वारियाँ दिल से न लगाइए ॥
कैसे जाएगी गुलदस्तों की रवायत ।
आप लीजिये और इन्हें भी दिलवाइए ॥
खेत-माटी, खाद-पानी, गाँव, भारत-भारती ।
आप इण्डिया की सोचिये, शेष भूल जाइए ॥
सरकार के सालार, पगड़ी में रहें, बेशक ।
अर्ज़ बस इतनी, हमें, टोपी मत पहनाइए ॥
सरकार चलाने का हुनर जानने वालों ।
पंजे को बक्शिये, थप्पड़ मत बनाइए ॥
हर पाँच साल बाद करती है फ़ैसला ।
जनता नहीं गूंगी, मत सितम ढ़ाइए ॥
आप ने समझा हमें गाफ़िल, इनायत ।
कल का मेन्यू मैडम जी से पूछ आइए ॥
बर्बाद कर दिया चमन को बागबां ने खुद।
अब तो कलियों पे ज़रा तरस खाइए ॥
---आशुतोष कुमार झा
माल बहुत है ज़रा धीरे-धीरे खाइए ॥
जल जाए दिल्ली या मुम्बई जाए दहल।
आप अपनी-अपनी रोटियाँ पकाइए ॥
दर्द होता है दिल का दुश्मन हुज़ूर ।
हमारी दुश्वारियाँ दिल से न लगाइए ॥
कैसे जाएगी गुलदस्तों की रवायत ।
आप लीजिये और इन्हें भी दिलवाइए ॥
खेत-माटी, खाद-पानी, गाँव, भारत-भारती ।
आप इण्डिया की सोचिये, शेष भूल जाइए ॥
सरकार के सालार, पगड़ी में रहें, बेशक ।
अर्ज़ बस इतनी, हमें, टोपी मत पहनाइए ॥
सरकार चलाने का हुनर जानने वालों ।
पंजे को बक्शिये, थप्पड़ मत बनाइए ॥
हर पाँच साल बाद करती है फ़ैसला ।
जनता नहीं गूंगी, मत सितम ढ़ाइए ॥
आप ने समझा हमें गाफ़िल, इनायत ।
कल का मेन्यू मैडम जी से पूछ आइए ॥
बर्बाद कर दिया चमन को बागबां ने खुद।
अब तो कलियों पे ज़रा तरस खाइए ॥
---आशुतोष कुमार झा