कुछ शर्म करो, कुछ शर्म करो, ओ राज चलाने वालों ।
कठपुतली सी जनता को तुम सदा नचाने वालों ॥
लोकतंत्र परिवारतंत्र में बदल दिया क्यों तुमने ?
भारत को जागीर पिता की समझ लिया क्यों तुमने ?
घृणा, द्वेष, अभिमान की भाषा ऐसे बोल रहे हो ।
गिरह पाप के अपने-अपने खुद ही खोल रहे हो ॥
किस मुँह से अपने कर्मों का पर्दाफ़ाश सहोगे ?
बन जाये जनलोकपाल तो ज़द में तुम भी रहोगे ॥
इसलिये देश को किया पेश तुमने नायाब नमूना ।
छोटे गाँधी को किया बंद तुम सबने बिना मुक़दमा॥
सुना चुके सिब्बल सब भाषण, दिग्गी का भी चुक गया राशन।
अण्णा अपनी बात पे कायम, चलता रहा जेल में अनशन ॥
कोर्ट-कचहरी , लाठी-गोली , जेल-सलाखें कितनी देर ।
जाग चुकी है जनता जब तो परिवर्तन में कितनी बेर ॥
उलगुलान का अब है नारा, अन्ना माथा मुकुट हमारा ।
राज हमारा , ताज हमारा , जनता का सारा का सारा ॥
परिवर्तन की लहर चली , इस बार आर या पार ।
हमीं रहेंगे देश में यारों या फ़िर भ्रष्टाचार ॥
वादे झूठे, नीयत खोटी, तिस पर दुश्मन सा व्यवहार।
ले जनता खुद निर्णय, सच्चे अण्णा या सरकार ॥
कठपुतली सी जनता को तुम सदा नचाने वालों ॥
लोकतंत्र परिवारतंत्र में बदल दिया क्यों तुमने ?
भारत को जागीर पिता की समझ लिया क्यों तुमने ?
घृणा, द्वेष, अभिमान की भाषा ऐसे बोल रहे हो ।
गिरह पाप के अपने-अपने खुद ही खोल रहे हो ॥
किस मुँह से अपने कर्मों का पर्दाफ़ाश सहोगे ?
बन जाये जनलोकपाल तो ज़द में तुम भी रहोगे ॥
इसलिये देश को किया पेश तुमने नायाब नमूना ।
छोटे गाँधी को किया बंद तुम सबने बिना मुक़दमा॥
सुना चुके सिब्बल सब भाषण, दिग्गी का भी चुक गया राशन।
अण्णा अपनी बात पे कायम, चलता रहा जेल में अनशन ॥
कोर्ट-कचहरी , लाठी-गोली , जेल-सलाखें कितनी देर ।
जाग चुकी है जनता जब तो परिवर्तन में कितनी बेर ॥
उलगुलान का अब है नारा, अन्ना माथा मुकुट हमारा ।
राज हमारा , ताज हमारा , जनता का सारा का सारा ॥
परिवर्तन की लहर चली , इस बार आर या पार ।
हमीं रहेंगे देश में यारों या फ़िर भ्रष्टाचार ॥
वादे झूठे, नीयत खोटी, तिस पर दुश्मन सा व्यवहार।
ले जनता खुद निर्णय, सच्चे अण्णा या सरकार ॥
No comments:
Post a Comment