आपकी महफ़िल में आना चाहता हूँ ।
खुदगर्ज़ तनहाई भुलाना चाहता हूँ ॥
सर्द मौसम की सुबह कांपते लब से ।
प्यार का गुनगुना गीत गाना चाहता हूँ ॥
शाख से टूट कर बिखर गया कैसे ।
एक पत्ते की दासताँ सुनाना चाहता हूँ ॥
बेड़ियाँ मेरे पाँवों की जानती हैं सबब ।
मैं आसमां के उस पार जाना चाहता हूँ ॥
लौट आए वफ़ा का मौसम तो कहना ।
मैं इन्तज़ार का कोई बहाना चाहता हूँ ॥
पास खंज़र नहीं तेरे पर सच ये है ।
इन्हीं हाथों से कोई ज़ख्म खाना चाहता हूँ ॥
इश्क किसी से और कयामत किसी पर ।
मैं राहे वफ़ा का सच दिखाना चाहता हूँ ॥
तुम्हारी हसरतों के पर, मेरा आसमाँ ।
मैं क्या कहूँ, कितना कमाना चाहता हूँ ॥
बया का घोंसला भी कम नहीं जन्नत से ।
मैं दरख़्त के साये में ठिकाना चाहता हूँ ॥
किन हाथों दिल का साज़ रख दिया मैंने ।
उठती है टीस जब भी बजाना चाहता हूँ ॥
--- आशुतोष कुमार झा
खुदगर्ज़ तनहाई भुलाना चाहता हूँ ॥
सर्द मौसम की सुबह कांपते लब से ।
प्यार का गुनगुना गीत गाना चाहता हूँ ॥
शाख से टूट कर बिखर गया कैसे ।
एक पत्ते की दासताँ सुनाना चाहता हूँ ॥
बेड़ियाँ मेरे पाँवों की जानती हैं सबब ।
मैं आसमां के उस पार जाना चाहता हूँ ॥
लौट आए वफ़ा का मौसम तो कहना ।
मैं इन्तज़ार का कोई बहाना चाहता हूँ ॥
पास खंज़र नहीं तेरे पर सच ये है ।
इन्हीं हाथों से कोई ज़ख्म खाना चाहता हूँ ॥
इश्क किसी से और कयामत किसी पर ।
मैं राहे वफ़ा का सच दिखाना चाहता हूँ ॥
तुम्हारी हसरतों के पर, मेरा आसमाँ ।
मैं क्या कहूँ, कितना कमाना चाहता हूँ ॥
बया का घोंसला भी कम नहीं जन्नत से ।
मैं दरख़्त के साये में ठिकाना चाहता हूँ ॥
किन हाथों दिल का साज़ रख दिया मैंने ।
उठती है टीस जब भी बजाना चाहता हूँ ॥
--- आशुतोष कुमार झा
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