Sunday 28 August 2011

सरकार अन्ना से किस भाषा में बात करती है ??

सरकारी भाषा

खेल - तमाशा ,
नीम - बताशा ।
सीधे - ऐड़े  ,
लड्डू - पेड़े ।
उबाल - गरम,
उतार - नरम।
मौसम - भारी,
दुश्मन - यारी।
सुक्खम-दुक्खम,
चप्पल-जूत्तम ।
जलवा - बलवा,
रबड़ी - हलवा।
केश - निखार,
चमन - बहार।
चालू - चमचा,
चिंतन - चर्चा।
दलहन-तिलहन,
बर्तन - बासन।
भूत - भभूत ,
पासा - द्यूत।
तेवर - ज़ेवर ,
तमग़ा - फ़ेवर।
तूम - तड़ाक ,
झूम - झटाक ।
चिड़िया - उड़ ,
चाभी - फ़ुर्र ।
काशी - झांसी ,
कोरट - फ़ांसी ।
कौव्वा - चील ,
चमड़ा - स्टील ।
अन्ना - बन्ना ,
हीरा - पन्ना ।

आशुतोष कुमार झा

Friday 19 August 2011

सरकार की जय हो !!

आदेशानुसार

हथकड़ियाँ पहन ली  हैं
चिपका लिया है
मुँह पर टेप
पाँवों को बना दिया  है
अभ्यस्त
आदेशानुसार  ।

आप की हर बात
मानी जाएगी सरकार  ।

सर्वशक्तिमान सत्ता को
चुनौती देने वाले तमाम
लोगों की जमात
माँगती है आप से
रहम की भीख
दया के महासागर
हे ! करुणा के अवतार ।

बस एक इल्तिज़ा है हुज़ूर
रात आधी नींद
या सुबह की चाय पर
सत्ता की पीनक जब टूटे
आस-पास अंगरक्षकों का साया छूटे
एक बार सोचियेगा,
बिचारियेगा माइ -बाप
क्या आप के पास हैं--
सवा सौ करोड़ हथकड़ियाँ,
इतने लोगों के मुँह पर चिपकाने के लिये
टेप का भंडार ।

खल्क खुदा का,
मुल्क आप का--
माइ-बाप
हम सब कुछ सहने-करने को
हैं तैयार
आदेशानुसार ।

                       ------आशुतोष कुमार झा

Tuesday 16 August 2011

अन्ना के नाम

कुछ शर्म करो, कुछ शर्म करो, ओ राज चलाने वालों  ।
कठपुतली  सी  जनता  को  तुम  सदा नचाने वालों ॥

लोकतंत्र  परिवारतंत्र  में  बदल  दिया  क्यों  तुमने  ?
भारत को जागीर पिता की  समझ लिया क्यों तुमने  ?

घृणा, द्वेष, अभिमान  की  भाषा  ऐसे  बोल  रहे हो  ।
गिरह  पाप  के  अपने-अपने  खुद  ही  खोल  रहे हो ॥

किस  मुँह  से  अपने  कर्मों  का  पर्दाफ़ाश  सहोगे   ?
बन  जाये  जनलोकपाल  तो  ज़द  में  तुम भी रहोगे ॥

इसलिये  देश  को  किया  पेश  तुमने  नायाब  नमूना ।
छोटे गाँधी  को  किया  बंद  तुम सबने  बिना  मुक़दमा॥

सुना चुके सिब्बल सब भाषण, दिग्गी का भी चुक गया राशन।
अण्णा  अपनी  बात  पे कायम, चलता रहा जेल में अनशन ॥

कोर्ट-कचहरी , लाठी-गोली , जेल-सलाखें  कितनी  देर    ।
जाग  चुकी  है  जनता  जब तो परिवर्तन में कितनी बेर ॥

उलगुलान  का  अब  है  नारा, अन्ना माथा मुकुट हमारा ।
राज  हमारा , ताज  हमारा , जनता का सारा  का  सारा ॥

परिवर्तन  की  लहर  चली , इस  बार  आर  या  पार  ।
हमीं   रहेंगे   देश   में   यारों   या   फ़िर  भ्रष्टाचार ॥

वादे  झूठे,  नीयत  खोटी,  तिस  पर दुश्मन सा व्यवहार।
ले  जनता  खुद  निर्णय,  सच्चे  अण्णा  या  सरकार  ॥




अन्ना को

लाल गुलाब

मैं
अन्ना को
अपने समर्थन के साथ
एक लाल गुलाब
देना चाहता हूँ
सुर्ख रंग और
मादक सुगंध के एहसास के साथ
हम धन्य हैं
कर्मयुग में आपके
साथ जन्म लिया
वर्ना हमारे बच्चों को
सचिन, शाहरूख, सलमान के बाद
अपना रोल मॉडल चुनने
सुदूर इतिहास में जाना पड़ता  ।

क्या पता,
कल इतिहास हमें माफ़ ना करे
मैंने तो तुम्हें
गाँधी और अगस्त का महीना
साथ-साथ दिया था
मगर कमज़र्फ़
तुम लोग मुझे
     "आज़ाद" हिंदोस्तान न दे सके  ।
और हम फ़ैज़ की नज़्म गुनगुनाते रह जायें--
’ये दाग़-दाग़ उजाला, ये शबगज़ीदा सहर’
हाथ मलते, एक दूसरे की पेशानियाँ पढ़ते--

Sunday 14 August 2011

आज़ादी का नया गीत

छह   दशकों  के  बाद  भी  चले  भूख  का  राज   |
किनको आज़ादी  मिली  विकट प्रश्न यह आज  | |
विकट  प्रश्न  यह  आज  तिरंगा  क्यों  फहराएँ   ?
किस  मुंह  से  हम  आज़ादी  का  जश्न  मनाएं ?
लाल  किले  से  भाषण   खूब  पिलाने   वालों   ?
 जनता  को  बहलाने  और  फुसलाने   वालों    ?
फिर   गांधी   की   आहट  पा  कर भौंक रहे हो ?
भगत   सिंह   की  गुर्राहट  पे  चौंक  रहे   हो   ?
इंक़लाब का बिगुल  बजाना  ही  होगा  चौराहों  पर  |
और नगाड़ा उलगुलान का सत्ता के गलियारों पर  ||

Wednesday 10 August 2011

यशवंती रस

यशवंती रस टपका तो कोड़ा हुए निहाल |
खुली पोटली सत्य की जम कर मचा बवाल||
जम कर मचा बवाल माकन जी घबराये |
खूब  तरेरी  आँखें ,  भोंहें   खूब    नचाये ||
लेकिन चली न चाल घूस का भांडा फूटा |
सबने मिल कर झारखण्ड को इतना लूटा ||