एक गीत
ख्वाबों में अकसर बुनता था
हर्फ़ों के मोती चुनता था
गीत वही अपने किस्से का
याद नहीं , कुछ याद नहीं ॥
सागर तल पर रेती बिखरे
नील गगन पर बादल निखरे
लहरों का आना और जाना
याद नहीं , कुछ याद नहीं॥
बरस पुरानी बात हो गई
चेहरे पर बरसात हो गई
कितनी कलियाँ,कितने पत्ते
याद नहीं , कुछ याद नहीं॥
तनहा रात चली आती अब
छत पर अकसर सो जाती अब
तारों से तरकीबी बातें
याद नहीं,कुछ याद नहीं॥
कमरा खाली , मुँह पर जाली
इस उपवन का कोई न माली
कितने पाँव रौंद कर निकले
याद नहीं , कुछ याद नहीं ॥
किस सूरज को याद करूं
किस चन्दा से फ़रियाद करूं
आसमान कब गिरवी रक्खा
याद नहीं , कुछ याद नहीं॥
हुस्न का मौसम फिर कर आया
रंग एक ना मुझको भाया
सोहबत में कितने दिल टूटे
याद नहीं , कुछ याद नहीं॥
दिल जाने किस की याद में रोता
कौन किसी का अपना होता
लैला - हीर के झूठे किस्से
याद नहीं , कुछ याद नहीं॥
---आशुतोष कुमार झा
ख्वाबों में अकसर बुनता था
हर्फ़ों के मोती चुनता था
गीत वही अपने किस्से का
याद नहीं , कुछ याद नहीं ॥
सागर तल पर रेती बिखरे
नील गगन पर बादल निखरे
लहरों का आना और जाना
याद नहीं , कुछ याद नहीं॥
बरस पुरानी बात हो गई
चेहरे पर बरसात हो गई
कितनी कलियाँ,कितने पत्ते
याद नहीं , कुछ याद नहीं॥
तनहा रात चली आती अब
छत पर अकसर सो जाती अब
तारों से तरकीबी बातें
याद नहीं,कुछ याद नहीं॥
कमरा खाली , मुँह पर जाली
इस उपवन का कोई न माली
कितने पाँव रौंद कर निकले
याद नहीं , कुछ याद नहीं ॥
किस सूरज को याद करूं
किस चन्दा से फ़रियाद करूं
आसमान कब गिरवी रक्खा
याद नहीं , कुछ याद नहीं॥
हुस्न का मौसम फिर कर आया
रंग एक ना मुझको भाया
सोहबत में कितने दिल टूटे
याद नहीं , कुछ याद नहीं॥
दिल जाने किस की याद में रोता
कौन किसी का अपना होता
लैला - हीर के झूठे किस्से
याद नहीं , कुछ याद नहीं॥
---आशुतोष कुमार झा
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