अक्षर अनंत
आशुतोष कुमार झा का अनुभव एवं रचना संसार
Sunday 11 September 2011
ऐसा भी एक इंतज़ार
क्षण मुक्तक में ढ़ल गए
दीप- शिखा से जल गए
मैं दहलीज़ न लांघ सका
तुम आते-आते टल गए॥
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