रस सिक्त
कर गए
हर रिक्त
तुम आए
श्याम सखा बन कर
खेला नभ में जी भर
अंजुली न खाली छोड़ी
पत्तों - शाखों में
मद - मदन्त
ज़बरन
अंकित किया
जलद का
चुम्बन अनंत |
भेजा अमोल उपहार
कृषक के जीवन में
अंकुर अशेष
मल्हार |
अब विदा ले रहे
कहें, रुक जाओ
मत ही जाओ
बहुत बाकी हैं बातें
जन मन की
किन्तु यह हठ होगी |
पलकें देखेंगी राह
फिर अगले साल
आखेट पर आना
नव श्रृंगार कर के आना
न चलेगा कोई बहाना
जल्दी ही आना
शुभ विदा प्रिय जलद - कुञ्ज
---- आशुतोष कुमार झा
कर गए
हर रिक्त
झमाझम बरसा कर
संगीत |
दिन गए विगत
अलसाए .....
कुम्हलाए प्रणय में बीत |
तुम आए
श्याम सखा बन कर
खेला नभ में जी भर
अंजुली न खाली छोड़ी
पत्तों - शाखों में
मद - मदन्त
ज़बरन
अंकित किया
जलद का
चुम्बन अनंत |
भेजा अमोल उपहार
कृषक के जीवन में
अंकुर अशेष
मल्हार |
अब विदा ले रहे
कहें, रुक जाओ
मत ही जाओ
बहुत बाकी हैं बातें
जन मन की
किन्तु यह हठ होगी |
पलकें देखेंगी राह
फिर अगले साल
आखेट पर आना
नव श्रृंगार कर के आना
न चलेगा कोई बहाना
जल्दी ही आना
शुभ विदा प्रिय जलद - कुञ्ज
---- आशुतोष कुमार झा
No comments:
Post a Comment