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नहीं जान पाया कब तुमने हृदय छुआ ।
नहीं जान पाया कब तुमसे प्रेम हुआ ॥
उचटा था मन ,
भर कर जीवन ।
आँखों की सरिता से तुमने
भीतर कहीं प्रवेश किया।
मीठा सा इक दर्द कहीं महसूस हुआ ।
नहीं जान पाया कब तुमसे प्रेम हुआ ॥
बने पलक बिछौना ,
हुआ मुश्किल जीना
साँसों में भर कर सुवास ,
फूटा वसंत कब पहली बार ।
कब सावन की बूंदों का संस्पर्श हुआ ।
नहीं जान पाया कब तुमसे प्रेम हुआ ॥
जैसे मोती हों लब पर ,
तू आई रहमत बन कर ।
नैय्या डगमग मझधार ,
बनीं तुम मेरी खेवनहार ।
कब तुम्हें सौंप कर खुद को मैं निश्चिन्त हुआ ।
नहीं जान पाया कब तुमसे प्रेम हुआ ॥
कुछ छोटी कविताएं
१
इक प्रेम का कच्चा धागा ,
कुछ अल्फ़ाज़ों के मोती
पिरो दिया एक साथ ,
बन गया गीत नया ।
२
हर वसंत के बाद
ऊष्णता लील गयी फ़ूलों को,
सृजन का गंध बिखेर धरा पर
रज कण में मिल गयी पंखुरी।
३
किसे दूं ह्र्दय का पुष्प निराला ,
यौवन चाहे रंग - गंध , जगत
चाहता मादकता अनुपम , और
ज़ेब में भरी हुयी हो
माया की मधुशाला ।
४
दिवस के बाद विराम रात्रि,
गति का परिणाम रात्रि
तमस और ज्योति के पथ पर
जीवन का संधान रात्रि ।
५
कदमों की आहट पहचानूँ
आँखों को जुगनू मैं मानू
तू मुझको माने न माने
मैं तुझको रब जैसा मानूं ।
६
बस कदम बढ़ाना याद मुझे
चलते ही जाना याद मुझे
अपनी किस्मत अपने हाथों है यारों
रोज लकीरों को झुठलाना याद मुझे \
७
तेरी याद के बादल छंटेंगे
फिर विरह की धूप होगी
आसमाँ में चाँद - तारे
घर मेरे वीरानियाँ ही ।
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आशुतोष कुमार झा
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