Saturday 16 July 2011

एक और कविता

अपना इतिहास
मत सुनाओ मुझे    
आत्मा पर भाषण   
मत डराओ परमात्मा के नाम पर
सरग- नरक के झमेले में मत उलझाओ 
अपना ही आत्म-बल जगाओ
हिम्मत से काम लो,
आओ , श्रम के उचित मूल्य
और काम के घंटे पर बात करो ।

नहीं चाहता मैं
इतिहास की नाजायज़ औलाद बनना    
दिग्विजेताओं के जूते ढोना पसन्द नहीं                                              
सिंहासन की कठपुतलियों मे शामिल होना
मेरा स्वभाव नहीं ।
  
मुझे , नहीं तरना तीरथों की सीढ़ियाँ चढ़कर
नहीं होना पबित्तर 
अमृत सरोवर में डुबकी लगाकर ,
मुझे धरम-जात में मत लपेटो
ए चोंगे वाले ,
मेरे सामने से अपना धंधा समेटो
मेरे कान में मत फूंको मंतर,
दूर रखो कंठी - माला,
दे सकते हो तो.......
मुझे काम दो.......
मेरे हाथों को औज़ार दो.......

मैं आस्था के खंडहरों में भटकना नहीं चाहता,
परम-ज्ञान की अतल गहराइयों में
खोने का स्वांग भी
भरना नहीं चाहता ,
मैं खेतों , खलिहानों , कारखानों से लगकर
उनका ही होना चाहता हूँ ।

कितनी भी जहरीली हों राजनीति की लताएं
समझो, सहो और बदलो
बेशक, जले हुए हैं
मेरे ये हाथ दोनों
पर इस नाम पर चल रहे विमर्शों पर
मुझे भी खोलना है
अपना मुँह ।

मुझे रीढ़विहीन जंतु बनाकर
अपने बिलों में मत धकेलो
मत नचाओ अपने तर्ज की वीणा पर
दुग्ध-पात्र धरकर मत बहलाओ ।

मुझे नहीं सुनना अल्लाह का करम
मत गाओ रामधुन
यदि ज़बान है तो
महल और झोंपड़ी
रोटी और भू्ख
ऊँच और नीच से
भेद भरे समाज पर
उसे खोलो ।

तिजोरियों में कैद गरीबों की आह का हिसाब दो
गहनों से लदीं सुंदर मूर्तियों
पर सोने का चढ़ावा
चढ़ाते किसी मनुष्य विरोधी की तस्वीर मत दिखाओ,
अगर बताना ही है तो
मंदिरों के आगे
जुटने वाली भिखारियों की भीड़ का कारण समझाओ।

पहचानी है मैंने तुम्हारी चाल
हमें शतरंज की गोटियाँ मत बनाओ,
यदि हिम्मत है तो
श्रम के उचित मूल्य
और काम के घंटे पर बात करो ।

       -----आशुतोष कुमार झा








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